Encyclopedia of Muhammad
जन्म 555 C.E मृत्यु 619 C.E. आयु 65 साल पिता खुवैलिद इब्न असद मां फातिमा बिन्त ज़ैदाजीवनसाथी अतीक इब्न आबिदीन अब्दुल्लाह मखज़ूमी (विधवा) अबू-हाला इब्न ज़रारा तमीमी (विधवा) पैगंबर मुहम्मद ﷺवंशज कासिम رضى الله عنه ताहिर رضى الله عنه तैय्यब رضى الله عنه ज़ैनब رضى الله عنها रूकय्या رضى الله عنها उम्मे-कुलसूम رضى الله عنها और फातिमा। رضى الله عنهاशांत स्थान Jannat ul Muallah in Makkah

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खदीजा बिन्त खुवैलिद

जब हज़रत पैगंबर 25 वर्ष के थे, तो उन्होंने खदीजा बिन्त खुवैलिद से शादी की, जो उस समय 40 वर्ष की थीं। यह हज़रत पैगंबर की पहली शादी थी और जब तक वह जीवित रहीं तब तक उन्‍होंने किसी अन्य महिला से शादी नहीं की। उनका विवाहित जीवन दुनिया भर के सभी विवाहित जोड़ों के लिए एक आदर्श उदाहरण माना जाता है।

खदीजा

खदीजा बिन्त खुवैलिद एक बुद्धिमान, प्रतिभाशाली, हृदय-दयालु, सहनशील, सभ्‍य एवं शालीन महिला थीं। वह वंश में सबसे कुलीन, गरिमा में सर्वोच्च और कुरैश में सब से अमीर थीं। उनका जन्म आम आमुल-फ़ील (हाथी वर्ष) से लगभग 15 साल पहले मक्का में हुआ था। 1 उनका परिवार क्षेत्र के अन्य परिवारों की तुलना में अधिक सम्माननीय और प्रतिष्ठित माना जाता था। उनके पिता खुवैलिद एक प्रसिद्ध व्यवसायी थे जिनकी मृत्यु हर्बुल-फिजार (Sacrilegious) से पहले हो गई थी। 2

वंशावली

ख़दीजा, खुवैलिद इब्न असद इब्न अब्दुल-उज्‍़जा इब्न कुसइ इब्न किलाब इब्न मुर्रा इब्न काअब इब्न लुइ इब्न ग़ालिब इब्न फ़हर की बेटी थीं। उनकी मां फातिमा थीं। जो ज़ायदा इब्‍न अल-असम इब्‍न रवाहा इब्‍न हजर इब्‍न अब्द इब्‍न मईस इब्‍न आमिर इब्‍न लुइ इब्‍न ग़ालिब इब्‍न फ़हर की बेटी थीं। 3

हज़रत पैगंबर से निकाह से पहले शादी

खदीजा की पहली शादी अतीक इब्न आबिदीन अब्दुल्लाह मखज़ूमी से हुई थी और उनकी मृत्यु के बाद उनकी शादी अबू-हाला इब्न ज़रारा तमीमी से हुई। 4 उनसे उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम हिंद बिन अबी-हाला था। हिंद बिन अबी-हाला का पालन-पोषण हज़रत पैगंबर और ख़दीजा ने किया। वह मुसलमान हुए और बद्र और उहुद की जंग में हज़रत पैगंबर के साथ लड़ाई लड़ी। 5

खदीजा को अतीक बिन आबिदीन मखज़ूमी से एक बेटी हुई, इसलिए वह उम्मे-हिंद के उपनाम से मशहूर हुईं। 6 उनके दूसरे पति की मृत्यु हो गई और उनकी इद्दत (इद्दात, वह अवधि जिसके दौरान एक महिला अपने पति की मृत्यु या तलाक के बाद किसी अन्य पुरुष से शादी नहीं कर सकती।) ख़त्म हो गई, तो उन्हें कबीले के कुलीन एवं उच्‍च वर्ग और मशहूर हस्तियों द्वारा शादी के लिए विभिन्न प्रस्ताव भेजे गए, हालाँकि, उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से इन सभी को अस्वीकार कर दिया। 7

चरित्र

खदीजा उन महिलाओं में से एक थीं जो अपनी पारिवारिक श्रेष्ठता, प्रतिष्ठा, शुद्धता, गरिमा एवं महिमा, चरित्र एवं स्‍वाभव, दयालुता, उदारता, धन-दौलत और व्यापार के लिए प्रसिद्ध थीं। 8 हालाँकि उनका जन्म और पालन-पोषण एक ऐसे समाज में हुआ था जो बहुदेववाद (शिर्क) से ग्रस्त था, फिर भी उन्होंने बहुदेववाद और अनैतिक कामों से परहेज किया क्योंकि उनके चाचा वारका बिन नौफल बहुदेववाद में विश्‍वास नहीं रखते थे। 9 वह इस तथ्य से भी अवगत थीं कि बनू इस्माइल की संतान में से एक पैगंबर आने वाला है, जैसा कि वारक़ा इब्‍न नौफल ने उन्‍हें इसके बारे में सूचित किया था। 10

व्यावसायिक गतिविधियां

इतिहासकारों के मुताबिक खदीजा को अपने माता-पिता और पतियों से भारी संपत्ति विरासत में मिली थी, जिसे उन्होंने कई व्यवसायों में निवेश किया। चूँकि वह व्यापारिक कारवां के साथ यात्रा नहीं कर सकती थी, इसलिए वह कई व्यावसायिक उपक्रमों में 11 निष्क्रिय साझेदार (sleeping partner) के रूप में निवेश करती थीं। यमन और सीरिया जो उस समय अरबों के लिए प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे, गर्मियों में अरबों का व्यापारिक कारवां सीरिया की ओर जाता था जबकि सर्दियों में वे यमन की ओर जाते थे। 12

हज़रत पैगम्बर से विवाह

हज़रत पैगंबर मुहम्मद से उनके विवाह को लेकर कई सच्ची और झूठी कथाएं और रवायतें मुसलमानों और गैर-मुसलमानों द्वारा बयान की गई हैं। एक रिवायत यह है कि हज़रत पैगंबर ने खदीजा से शादी करने से इनकार कर दिया था क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे और उन्होंने इस बात पर शादी स्वीकार कर ली कि खदीजा हर चीज की कीमत अदा करेगी। मुहम्मद बिन साद बयान करते हैं:

  عن نفيسة بنت منية قالت: ... فأرسلتني دسيسا إلى محمد بعد أن رجع في عيرها من الشام. فقلت: يا محمد ما يمنعك أن تزوج؟ فقال: ما بيدي ما أتزوج به. قلت: فإن كفيت ذلك ودعيت إلى الجمال والمال والشرف والكفاءة ألا تجيب؟ قال: فمن هي؟ قلت: خديجة. قال: وكيف لي بذلك؟ قالت قلت: علي. قال: فأنا أفعل. فذهبت فأخبرتھا. فأرسلت إليه أن ائت لساعة كذا وكذا… 13
  नफ़ीसा बिन्त मुनियह कहती हैं... जब मुहम्मद () अपनी व्यापार यात्रा के बाद सीरिया से लौटे तो ख़दीजा ने मुझे गुप्त रूप से उनके पास भेजा। मैं (नफ़ीसा) ने कहा, हे मुहम्मद () क्या चीज आप को शादी करने से रोकती है? उन्होंने कहा: मेरे पास शादी का कोई साधन नहीं है। मैं (नफीसा) ने कहा: यदि आपको पर्याप्त साधन मिल जाए और आपको सुंदर स्‍वाभाव, जमाल, धन, सम्मान और समानता वाली महिला की ओर से प्रस्ताव मिले तो क्या आप उसे स्वीकार करेंगे? उन्होंने पूछा: वह कौन है? जवाब दिया, ख़दीजा। उन्होंने पूछा: यह कैसे संभव होगा? मैंने कहा: मैं उसकी व्यवस्था कर लूँगी। उन्होंने कहा: ठीक है, मैं सहमत हूं, तो उसने जाकर खदीजा को सूचित किया।.

अन्य विश्वसनीय कथाओ से पता चलता है कि यह इस्लाम के पैगंबर की पहली व्यापारिक यात्रा या पहला काम नहीं था। इमाम बुखारी कहते हैं कि अल्लाह के रसूल मक्का के लोगों की भेड़ें चराते थे। 14 अकबर शाह नजीबाबादी का कहना है कि हज़रत मुहम्मद अपने व्यापारिक माल को लेकर विभिन्न व्यापारिक कारवां के साथ गए और भारी मुनाफा लेकर लौटे। वह यह भी बताते हैं कि अल्लाह के रसूल ख़दीजा के व्यापारिक कारवां को बहरीन, यमन और सीरिया ले कर गए, और हर बार मुनाफे के साथ लौटे। 15 इब्न कसीर का कहना है कि खदीजा ने अन्य व्यापारियों 16 की तुलना में हज़रत पैगंबर को व्यापार की बेहतर शर्तों की पेशकश की, जिसका अर्थ है कि हज़रत पैगंबर ने इस सौदे में अच्छा मुनाफा कमाया। ये सभी रवायतें इस तथ्य को स्पष्ट करती हैं कि हज़रत पैगंबर ख़दीजा जितने अमीर नहीं थे, लेकिन उनके पास अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त संसाधन थे। इसके अलावा, इब्न हिशाम का कहना है कि जब हज़रत पैगंबर ने खदीजा से शादी की, तो उन्होंने उन्हें महर के 17 रूप में 20 जवान ऊंट दिए, जिन की कीमत उन दिनों बहुत ज्यादा थी। ज़रक़ानी द्वारा दर्ज इमाम दुलाबी का एक और उद्धरण यह है कि उन्होंने उन्हें 12 औकीया चांदी दी और प्रत्येक औकीया 40 दिरहम के बराबर था। 18 एक दिरहम लगभग 3 ग्राम के बराबर होता है, जिसका अर्थ है कि पैगंबर ने उन्हें 1500 ग्राम चांदी दी थी। इससे पता चलता है कि उनके पास शादी करने और परिवार का भरण-पोषण करने के साधन थे और आप किसी और पर निर्भर नहीं थे। इसलिए, इस संबंध में वह रवायत जो हज़रत पैगंबर की ओर मनसूब है वह कमजोर है और यही कारण है कि इब्न इस्‍हाक, इब्न-हिशाम, इब्न कसीर वगैरा जैसे प्रख्यात इतिहासकारों ने इसे अपनी किताबों में शामिल नहीं किया है। इसके अलावा हदीसों की बड़ी किताबों में यह रवायत दर्ज नहीं है।

  …ذكر خديجة، وكان أبوها يرغب أن يزوجه، فصنعت طعاما وشرابا، فدعت أباها ونفرا من قريش، فطعموا وشربوا حتى ثملوا، فقالت خديجة لأبيھا: إن محمد بن عبد الله يخطبني، فزوجني إياه. فزوجها إياه فخلعته وألبسته حلة، وكذلك كانوا يفعلون بالآباء، فلما سري عنه سكره، نظر فإذا هو مخلق وعليه حلة، فقال: ما شأني، ما هذا؟ قالت: زوجتني محمد بن عبد الله. قال: أنا أزوج يتيم أبي طالب لا، لعمري. فقالت خديجة: أما تستحي تريد أن تسفه نفسك عند قريش؟ تخبر الناس أنك كنت سكران؟ فلم تزل به حتى رضي. 19
  हज़रत पैगंबर मुहम्‍मद ने ख़दीजा का जि़क्र किया और कहा कि उसके पिता अपनी बेटी का विवाह हज़रत मुहम्‍मद से करने के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए खदीजा ने एक भोज का आयोजन किया और कुरैश के कुछ उच्च वर्ग को आमंत्रित किया। वे (उनके पिता सहित) सभी ने तब तक खाया जब तक वे नशे में धुत्त नहीं हो गए। उस वक्त खदीजा ने अपने पिता से कहा कि पैगंबर मुहम्‍मद ने शादी का प्रस्ताव भेजा है, इसलिए मेरी शादी उनसे करा दो। जब उनके पिता उनकी शादी पैगंबर मुहम्‍मद से करने के लिए सहमत हो गए, तो खदीजा ने उन्‍हें एक विशेष पोशाक (अरब रीति-रिवाजों के अनुसार) पहनाई। जब शादी हो गई और उनके पिता को होश आया और उन्‍होंने अपने कपड़ों की ओर देखा और तो पूछा, क्या हुआ? मैंने ऐसे कपड़े क्‍यों पहने हैं? उनकी बेटी ने उनसे कहा, आपने मेरी शादी पैगंबर मुहम्‍मद से कर दी है, उन्होंने कहा, मैं तुम्हारा विवाह अबू तालिब के अनाथ से कैसे कर सकता हूँ? मैं कसम खाता हूं कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। उस पर खदीजा ने कहा, अगर आप ऐसी बातें कहेंगे तो क्या आप कुरैश के लोगों के सामने शरमिंदा नहीं होंगे? फिर वह उन्हें तब तक मनाती रही जब तक वे सहमत नहीं हो गए।

इस रवायत के बारे में अहमद बिन हंबल का कहना है कि इस रवायत को बयान करने वालों का सिलसिला बहुत कमज़ोर है। 20 बैहकी की भी यही राय है। 21 इब्न साद कहते हैं, कि पूरी रवायत झूठी और गलत प्रतीत होती है। प्रमाणित रवायत यह है कि ख़दीजा के पिता की मृत्यु इससे पहले फिजार की लड़ाई में हो गई थी और अम्र बिन असद ने ख़दीजा का विवाह हज़रत पैगंबर से कराया था। 22

संतान

एक पत्नी के रूप में, खदीजा अपने पति की दोस्त भी थीं, जो उनके रुझानों और विचारों में काफी हद तक भागीदार थीं। उनकी शादी आश्चर्यजनक रूप से अतिशुभ (मुबारक) और अत्यधिक आनंदों से भरी हुई थी, हालांकि शोक के दुखों के बिना नहीं। 23 वह इब्राहीम को छोड़कर सभी बच्चों की माँ थीं। उनके बच्चों के नाम थे: कासिम, ताहिर, तैय्यब, ज़ैनब, रूकय्या, उम्मे-कुलसूम और फातिमा। कासिम, तैय्यब और ताहिर का निधन पैग़म्बरी की घोषणा से पहले जाहिलियह 24 के युग (अल्‍प आयु) में हो गया था। उनकी सभी बेटियाँ जीवित रहीं, उन्होंने इस्लाम कबूल किया और अपने पिता के साथ मदीना प्रवास पर चली गईं।. 25

स्‍वर्गवास

हज़रत ख़दीजा का निधन हिजरत से लगभग तीन वर्ष पहले 65 वर्ष की आयु में उसी वर्ष हुआ, जिस वर्ष अबू तालिब 26 का निधन हुआ था। और उन्‍हें मक्का में जन्‍नतुल मुअल्‍लाह में दफनाया गया।

 


  • 1 Muhammad bin Saad Al-Basri (1990), TabqatAl-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 105.
  • 2 Muhammad bin JareerAbu Jaffar Al-Tabri (1387 A.H.), Tareekh Al-Tabri, Dar Al-Turath, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 282.
  • 3 Muhammad bin Ishaq bin Yasar Al-Madani (2009), Al-Seerah Al-Nabawiyah Li IbneIshaq, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 129.
  • 4 Abul Hasan Ali bin Abi Al-Karam Al-Shaibani Al-Jazri (1994), Usud Al-Ghabba fi Ma’rifat Al-Sahaba, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 7, Pg. 80.
  • 5 Abul Fida Ismael bin Kathir Al-Damishqi (1998), Jami Al-Masanid, Maktaba Al-Nahdha Al-Haditha, Makkah, Saudi Arabia, Vol. 8, Pg. 369.
  • 6 Muhammad bin Saad Al-Basri (1990), TabqatAl-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 8, Pg. 12.
  • 7 Muhammad bin Saad Al-Basri (1990), TabqatAl-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 105.
  • 8 Ali bin Ibrahim bin Ahmed Al-Halabi (1427 A.H.), Al-Seerah Al-Halabiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 199.
  • 9 Muhammad Abdul Malik bin Hisham (2009), Al-Seerah Al-Nabawiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 171-172.
  • 10 Muhammad Abdul Malik bin Hisham (2009), Al-Seerah Al-Nabawiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 149.
  • 11 Abul Fida Ismael bin Kathir Al-Damishqi (2011), Al-Seerah Al-Nabawiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 51.
  • 12 Abul Faraj Abdul Rehman bin Al-Jawzi (1422 A.H.), Zaad Al-Maseer, Dar Al-Kitab Al-Arabi, Beirut, Lebanon, Vol. 4, Pg. 494.
  • 13 Muhammad bin Saad Al-Basri (1990), Tabqat Al-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 105.
  • 14 Muhammad Bin Ismael Bukhari (1999), Sahih Al Bukhari, Hadith No.2262, Darus Salam, Riyadh, Saudi Arabia, Pg. 560.
  • 15 Akber Shah Najeebabadi (2000), The History of Islam, Darus Salam, Riyadh, Saudi Arabia, Vol. 1, Pg. 98-99.
  • 16 Abul Fida Ismael bin Kathir Al-Damishqi (2011), Al-Seerah Al-Nabawiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 51.
  • 17 Muhammad Abdul Malik bin Hisham (2009), Al-Seerah Al-Nabawiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 150.
  • 18 Abu Abdullah Muhammad bin Abdul Baqi Al-Zarqani (2012), Sharah Al-Allamatu Al-Zarqani Ala Al-Mawahib Al-Ladunya Bi Al-Manhi Al-Muhammadiya, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 378.
  • 19 Abu Abdullah Ahmed bin Muhammad bin Hanbal Al-Shaibani (2001), Musnad Ahmed bin Hanbal, Hadith: 2849, Muasasatu Al-Risala, Beirut, Lebanon, Vol. 5, Pg. 46.
  • 20 Abu Abdullah Ahmed bin Muhammad bin Hanbal Al-Shaibani (2001), Musnad Ahmed bin Hanbal, Hadith: 2849, Muasasatu Al-Risala, Beirut, Lebanon, Vol. 5, Pg. 47.
  • 21 Abu Bakr bin Ahmed Al-Hussain Al-Bayhaqi (2008), Dalail Al-Nabuwwah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 72.
  • 22 Muhammad bin Saad Al-Basri (1990), TabqatAl-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 105.
  • 23 Martin Lings (1985), Muhammad ﷺ his life based on the Earliest Sources, Suhail Academy, Lahore, Pakistan, Pg. 37.
  • 24 हज़रत पैगंबर की नुबूव्‍वत की घोषण से पहले के समय को सीरत की परिभाषा में दौरे-जाहिलिय्यह (Age of Ignorance) कहा जाता है।
  • 25 Muhammad bin Ishaq bin Yasar Al-Madani (2009), Al-Seerah Al-Nabawiyah Li IbneIshaq, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 130.
  • 26 Ibid, Pg. 271.